किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं:
अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है ।
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फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।
गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।
अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं:
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आजकल वो जमाना नहीं रहा जब किसान वही एक ही तरह की फसल का उत्पादन करते हुए उससे मुनाफा होने की उम्मीद लगाए बैठे रहें।
आजकल किसान भाई भी अपने खेत में अलग अलग तरह की फसल लगा कर पारंपरिक खेती से अलग हटकर भी कमाई कर रहे हैं। रंग बिरंगी मक्का यानि मल्टी कलर्ड मक्का (Multi Colored Maize) भी ऐसी ही खेती है।
यह दिखने में जितनी शानदार है, उतनी ही कमाई में भी इससे होती है। देश का बड़ा वर्ग खेती किसानी से जुड़ा है। भारत में गेहूं, मक्का, धान, दलहन, तिलहन की खेती किसान हर साल करोड़ों हेक्टेयर में करते हैं।
खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान और रबी की गेहूं है। इन फसलों की बुवाई कर किसान कमाई करते हैं। एक्सपर्ट का मानना है, कि एक बार अगर किसान गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों से हटकर कुछ करते हैं, तो इससे कमाई बंपर हो सकती है।
रंगीन मक्का की खेती भी ऐसी ही फसल है। इसे सूझबूझ कर किसान सालाना लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है, कि रंगीन मक्का की खेती का इतिहास काफी पुराना है। भारत में रंगीन मक्का की खेती पिछले 3 साल से की जा रही है।
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यदि मिट्टी की बात करें तो इसके लिए बलुई दोमट मिटटी बेहतर है। इसके अलावा एक्सपर्ट का मानना है, कि अगर बलुई मिट्टी नहीं है, तो आप इसे सामान्य मिट्टी में भी आसानी से उगा सकते हैं।
पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए नाइट्रोजन, जिंक सल्फेट व अन्य तत्वों का छिड़काव कर देना चाहिए। एक एकड़ में करीब 22 हजार बीज उगाए जा सकते हैं। दो बीजों के बीच की दूरी 75 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
सिंचाई करने के कुछ दिन बाद बीजों की बुवाई कर दें। मक्का के बीज उगने लगे तो सिंचाई कर देनी चाहिए। हर फसल की तरह इस फसल में से भी सभी तरह के खरपतवार समय समय पर साफ करते रहें। इसके अलावा समय समय पर सिंचाई करते रहना भी आवश्यक है।
बाजार में एक क्विंटल मक्का 3 से 4 हजार रुपये में बिकती हैं। एक हेक्टेयर में सवा से डेढ़ लाख रुपये तक की मक्का हो जाती है। किसान इसे बेचकर अच्छी कमाई कर सकते हैं।
मक्का का उपयोग हर क्षेत्र में समय के साथ-साथ बढ़ता चला जा रहा है। अब चाहे वह खाने में हो अथवा औद्योगिक छेत्र में। मक्के की रोटी से लेकर भुट्टे सेंककर, मधु मक्का के कॉर्नफलेक्स, पॉपकार्न आदि के तौर पर होता है।
वर्तमान में मक्का का इस्तेमाल कार्ड आइल, बायोफयूल हेतु भी होने लगा है। लगभग 65 प्रतिशत मक्का का इस्तेमाल मुर्गी एवं पशु आहार के तौर पर किया जाता है।
भुट्टे तोड़ने के उपरांत शेष बची हुई कड़वी पशुओं के चारे के तौर पर उपयोग की जाती है। औद्योगिक दृष्टिकोण से मक्का प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट, पेन्ट्स, स्याही, लोशन, स्टार्च, कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनने के उपयोग में लिया जाता है।
बिना परागित मक्का के भुट्टों को बेबीकार्न मक्का कहा जाता है। जिसका इस्तेमाल सब्जी एवं सलाद के तौर पर किया जाता है। बेबीकार्न पौष्टिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण साबित होता है।
खरीफ की फसल के लिए 15-20 सेमी गहरी जुताई करने के उपरांत पाटा लगाना चाहिए। जिससे खेत में नमी बनी रहती है। इस प्रकार से जुताई करने का प्रमुख ध्येय खेत की मृदा को भुरभुरी करना होता है।
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फसल से बेहतरीन उत्पादन लेने के लिए मृदा की तैयारी करना उसका प्रथम पड़ाव होता है। जिससे प्रत्येक फसल को गुजरना पड़ता है।
मक्का की फसल के लिए खेत की तैयारी के दौरान 5 से 8 टन बेहतरीन ढ़ंग से सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे डालनी चाहिए।
भूमि परीक्षण करने के बाद जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 किलो जिंक सल्फेट बारिश से पहले खेत में डाल कर खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई करें। रबी के मौसम में आपको खेत की दो वक्त जुताई करनी पड़ेगी।
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उपचार :- डायथेन एम-45 दवा को पानी में घोलकर 3-4 छिड़काव जरूर करना चाहिए।
2. पत्तियों का झुलसा रोग :- पत्तियों पर लंबे नाव के आकार के भूरे धब्बे निर्मित होते हैं। रोग नीचे की पत्तियों से बढ़ते हुए ऊपर की पत्तियों पर फैलना शुरू हो जाते हैं। नीचे की पत्तियां रोग के चलते पूर्णतया सूख जाती हैं।
उपचार :- रोग के लक्षण नजर पड़ते ही जिनेब का 0.12% के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
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3. तना सड़न :- पौधों की निचली गांठ से रोग संक्रमण शुरू होता है। इससे विगलन के हालात उत्पन्न होते हैं एवं पौधे के सड़े हुए हिस्से से दुर्गंध आनी शुरू होने लगती है। पौधों की पत्तियां पीली होकर के सूख जाती हैं। साथ ही, पौधे भी कमजोर होकर नीचे गिर जाती है।
उपचार :- 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों में देना चाहिये।
मक्का की फसल की कटाई के पश्चात गहाई सबसे महत्वपूर्ण काम है। मक्का के दाने निकालने हेतु सेलर का इस्तेमाल किया जाता है। सेलर न होने की हालत में थ्रेशर के अंदर सूखे भुट्टे डालकर गहाई कर सकते हैं।